शाबान के रोज़े और शबे बरात की वास्तविकता

शाबान का महीना रमजान की भूमिका है इसके
बाद रमजान का महीना आता है तो अति उचित था कि इस
महीने में रोज़ा जैसी इबादत का आयोजन हो।
शाबान में रोज़े का महत्वः
अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्ल. हमारे लिए रोल मॉडल हैं, आप
का तरीक़ा यह था कि आप इस महीने में अधिक से अधिक
रोज़ा रखते थे. सही बुखारी में हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु
अन्हा से रिवायत है, उन्होंने कहा:
ﻛﺎﻥ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﻪ ﺻﻠﻰ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻠﻢ ﻳﺼﻮﻡ ﺣﺘﻰ ﻧﻘﻮﻝ ﻻ ﻳﻔﻄﺮ، ﻭﻳﻔﻄﺮ ﺣﺘﻰ
ﻧﻘﻮﻝ ﻻ ﻳﺼﻮﻡ ﻭﻣﺎ ﺭﺃﻳﺖ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﻪ ﺻﻠﻰ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻠﻢ ﺍﺳﺘﻜﻤﻞ ﺻﻴﺎﻡ ﺷﻬﺮ ﻗﻂ
ﺇﻻ ﺭﻣﻀﺎﻥ، ﻭﻣﺎ ﺭﺃﻳﺘﻪ ﻓﻲ ﺷﻬﺮ ﺃﻛﺜﺮ ﻣﻨﻪ ﺻﻴﺎﻣﺎ ﻓﻲ ﺷﻌﺒﺎﻥ . ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ ‏( 1969‏) ،
ﻭﻣﺴﻠﻢ ‏( 1156
“अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्ल. रोज़ा रखते चले जाते यहां तक
कि हम समझते कि आप रोज़ा रखना न छोड़ेंगे और आप रोज़ा
छोड़ते चले जाते यहां तक कि हम समझते कि आप रोज़ा नहीं
रखेंगे मैं ने आप सल्ल. को नहीं देखा कि रमजान के सिवा
किसी महीने का पूरा रोज़ा रखा हो, और मैं ने उन्हें शाबान
से अधिक किसी अन्य महीने का रोज़ा रखते हुए नहीं देखा।”
मुस्नद अहमद की एक लंबी हदीस में हज़रत अनस रज़ियल्लाहु
अन्हु के माध्यम से वर्णित है वह कहते हैं:
ﻭﻛﺎﻥ ﺃﺣﺐ ﺍﻟﺼﻮﻡ ﺇﻟﻴﻪ ﻓﻲ ﺷﻌﺒﺎﻥ ﺭﻭﺍﻩ ﺍﻹﻣﺎﻡ ﺃﺣﻤﺪ ﻓﻲ ﺍﻟﻤﺴﻨﺪ
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को शाबान में
रोज़ा रखना अधिक पसंदीदा था. हज़रत अनस एक अन्य
रिवायत के अनुसार फरमाते हैं: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम जितना शाबान के रोज़े रखने का प्रयास करते
इतना अन्य महीनों के रोज़े का प्रयास नहीं करते थे।
मुस्नद अहमद, तिर्मिज़ी और नसाई की एक तीसरी रिवायत
आती है जो उम्मुल मुमिनीन हज़रत उम्मे सल्मा रज़ी. से वर्णित
है, उन्हों ने कहाः
ﻣﺎ ﺭﺃﻳﺖ ﺍﻟﻨﺒﻲ ﺻﻠﻰ ﺍﻟﻠﻪ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺳﻠﻢ ﻳﺼﻮﻡ ﺷﻬﺮﻳﻦ ﻣﺘﺘﺎﺑﻌﻴﻦ ﺇﻻ ﺷﻌﺒﺎﻥ ﻭﺭﻣﻀﺎﻥ
ﺭﻭﺍﻩ ﺍﺣﻤﺪ ﻭﺍﻟﺘﺮﻣﺬﻱ ﻭﺍﻟﻨﺴﺄﺋﻲ
“मैं ने नबी सल्ल. को शाबान और रमज़ान के अतिरिक्त
किसी अन्य दो महीनों में निरंतर रोज़ा रखते नहीं देखा “
इस हदीस के ज़ाहिर से यह विदित होता है कि नबी
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान के जैसे पूरा शाबान
रोज़ा रखा करते थे, और अभी हमने हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु
अन्हा वाली जो रिवायत बयान की है उस में आया है कि आप
शाबान के अधिक दिनों का रोज़ा रखते थे।
इस सम्बन्ध में कुछ उलमा ने एकत्र की यह शक्ल बताई है कि यह
समय के भिन्न होने के कारण था अर्थात् कुछ वर्षों में अल्लाह
के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सारा शाबान ही
रोज़ा रखा और कुछ वर्षों में शाबान के अधिक दिनों में
रोज़ा रखा।
और कुछ अन्य उलमा का कहना है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम रमज़ान के अतिरिक्त किसी अन्य महीना के रोज़े
नहीं रखते थे उन्हों ने हज़रत उम्मे सल्मा रज़ियल्लाहु अन्हा की
हदीस का उत्तर दिया है कि इस से अभिप्राय शाबान के
अधिक दिन हैं, और जब कोई व्यक्ति किसी महीना में अधिक
दिनों के रोज़े रखे तो बरबों की भाषा में यह कहना उचित है
कि उसने पूरे महीने के रोज़े रखा, इसी आधार पर हज़रत उम्मे
सल्मा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया कि अल्लाह के रसूल
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम शाबान के पूरे महीने के रोज़े रखते
थे। इसकी अधिक व्याख्या बुखारी और मुस्लिम में हज़रत इब्ने
अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित हदीस से होती है वह
बयान करते हैं: कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
ने रमज़ान के अतिरिक्त किसी भी पूरे महीने का रोज़ा नहीं
रखा।
तात्पर्य यह कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
शाबान के अक्सर दिनों के रोज़े रखते थे.
शाबान के रोज़ों की हिकमतः
सवाल यह है कि शाबान के रोज़े का आप इतना जो एहतमाम
करते थे इसका मुख्य कारण क्या था …? इस विषय को भी
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्पष्ट कर
दिया है:
इमाम नसाई और अबू दाऊद हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़ी. के
माध्यम से वर्णन करते हैं कि मैंने कहा:
ﻟﻢ ﺃﺭﻙ ﺗﺼﻮﻡ ﻣﻦ ﺍﻟﺸﻬﺮ ﻣﺎ ﺗﺼﻮﻡ ﻣﻦ ﺷﻌﺒﺎﻥ ﻗﺎﻝ : ﺫﺍﻙ ﺷﻬﺮ ﻳﻐﻔﻞ ﺍﻟﻨﺎﺱ ﻋﻨﻪ
ﺑﻴﻦ ﺭﺟﺐ ﻭﺭﻣﻀﺎﻥ، ﻭﻫﻮ ﺷﻬﺮ ﺗﺮﻓﻊ ﻓﻴﻪ ﺍﻷﻋﻤﺎﻝ ﺇﻟﻰ ﺭﺏ ﺍﻟﻌﺎﻟﻤﻴﻦ ﻋﺰ ﻭﺟﻞ
ﻓﺄﺣﺐ ﺃﻥ ﻳﺮﻓﻊ ﻋﻤﻠﻲ ﻭﺃﻧﺎ ﺻﺎﺋﻢ . ﺭﻭﺍﻩ ﺍﻹﻣﺎﻡ ﺃﺣﻤﺪ ‏( 21753 ‏)، ﻭﺍﻟﻨﺴﺎﺋﻲ
2357
“ऐ अल्लाह के रसूल! मैं आपको नहीं देखता कि आप किसी भी
महीने में इतना रोज़ा रखते हों जितना आप शाबान में रखते हैं?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया: “यह रजब
और रमज़ान के बीच वह महीना है जिस से लोग ग़फ़लत में पड़े
हुए हैं, यह वह महीना है जिस में अल्लाह के पास बन्दों के अमल
पेश किए जाते हैं, इसलिए मैं इस बात को पसंद करता हूँ कि जब
मेरा अमल अल्लाह के पास पेश किया जाए तो मैं रोज़े से हूँ।”
इस हदीस से पता चला कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम शाबान के अधिकतम दिनों का जो रोज़ा रखते थे
इसमें दो हिकमतें थीः
पहली हिकमत यह कि इस महीने में लोग ग़फ़लत के शिकार होते
हैं, और यह स्पष्ट है कि जिस समय लोग गफ़लत मैं हों उस समय
इबादत के पुण्य में वृधि कर दी जाती है. इसी लिए तहज्जुद की
नमाज़ का महत्व है कि उस समय लोग ला-परवाही में होते हैं
.गफ़लत के समय किसी काम का करना तबीयत पर शख्त
गज़रता है, क्योंकि किसी काम के करने वाले अगर अधिक
मात्रा में हों तो उनकी अदाएगी आसान हो जाती है जबकि
अगर काम के करने वाले कम मात्रा में हों तो उनकी अदाएगी
में परेशानी होती है. इसलिए पुण्य भी इसी के अनुपात से रखा
गया. इस महीने में ला-परवाही की वजह यह होती है कि कुछ
लोग रजब के महीने में रजब के मह्तव के नाम पर बिदात व
खुराफ़ात में लग जाते हैं, और जब शाबान आता है तो सुस्त पड़
जाते हैं.
दूसरी हिकमत यह है कि इस महीने में बन्दों के काम अल्लाह के
पास पेश किए जाते हैं और अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त
करने और अमल की स्वीकृति के लिए रोज़ा बहुत महत्व रखता
है।
यही कारण है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
इस महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखते और लोगों की
ग़फ़लत से लाभ उठाते थे, हालांकि आप वह हैं जिस के अगले
पिछले प्रत्येक पाप क्षमा कर दिये गये थे, तो फिर हमें इस
महीने में रोज़ों का कितना एहतमाम करना चाहिए इसकी
कल्पना हम और आप आसानी से कर सकते हैं। बल्कि इन दिनों
में रोज़े रखने के साथ साथ सदक़ा दान और क़ुरआन करीम की
तिलावत में भी आगे आगे रहना चाहिए, जब शाबान का
महीना आता तो हबीब बिन अबी साबित रहि. कहते थेः “यह
क़ारियों का महीना है।” और अमर बिन क़ैस अल-मुल्लाई
रहि. अपनी दुकान बंद कर देते और क़ुरआन करीम की तिलावत
के लिए स्वयं को फ़ारिग़ कर लेते थे।
शाबान के रोज़े रमज़ान के लिए ट्रैनिंग और अभ्यास की
हैसियत भी रखते हैं ताकि रमज़ान के कुछ दिनों पहले रोज़े का
अनुभव कर लेने से उसकी अदायेगी में किसी प्रकार की
परेशानी न आये और पूरी ताक़त और दिलजमई के साथ रमज़ान
के रोज़े रख सकें।
शबे बरात की वास्तविकताः
15 शाबान की रात को शबे-बरात कहते हैं। इस रात के सम्बन्ध
में विभिन्न प्रकार की हदीसें बयान की जाती हैं जिनका
उद्देश्य इस रात का महत्व बयान करना होता है। इस रात के
प्रति अल्लाह के रसूल सल्ल. का यह आदेश सही सनद के साथ
आया हैः
ﺇﻥ ﺍﻟﻠﻪ ﻟﻴﻄﻠﻊ ﻓﻲ ﻟﻴﻠﺔ ﺍﻟﻨﺼﻒ ﻣﻦ ﺷﻌﺒﺎﻥ ﻓﻴﻐﻔﺮ ﻟﺠﻤﻴﻊ ﺧﻠﻘﻪ ﺇﻻ ﻟﻤﺸﺮﻙ ﺃﻭ
ﻣﻨﺎﻓﻖ . ﺭﻭﻯ ﺍﻟﻄﺒﺮﺍﻧﻲ ﻭﺍﺑﻦ ﻣﺎﺟﺔ ﻭﺍﻟﺒﻴﻬﻘﻲ ﻭﺻﺤﺤﻪ ﺍﻷﻟﺒﺎﻧﻲ ﻓﻲ ﺍﻟﺴﻠﺴﻠﺔ
ﺍﻟﺼﺤﻴﺤﺔ 1144
“अल्लाह तआला शाबान की 15वीं रात को अपनी पूरी
सृष्टि की ओर (दया की दृष्टि से) देखता है फिर मुश्रिक और
झगड़ालू के अतिरिक्त शेष सभी सृष्टि के पापों को क्षमा कर
देता है।“ (अल-तबरानी, इब्ने हिब्बान, बैहक़ी)
इस हदीस को बयान करने के बाद अल्लामा अल-बानी रहि.
लिखते हैं : “ सारांश यह है कि यह हदीस प्रत्येक सनदों के साथ
निःसंदेह सही है।“ (सिलसिला सहीहाः अलबानीः1144)
यही हदीस शाबान की 15वीं रात की श्रेष्ठता के सम्बन्ध में
सही सनद के साथ बयान की जाती है इस के अतिरिक्त
जितनी हदीसें साधारण रूप में बयान की जाती हैं वह सभी
बिल्कुल कमज़ोर बल्कि बनावटी हैं। जैसेः
(1) शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह का। अलबनी
ने इसे मौज़ूअ अर्थात् बनावटी सिद्ध किया है (ज़ईफ़ अल-
जामि लिल-अल-बानी 3402)
(2) निःसंदेह अल्लाह शाबान की 15वीं रात को आसमाने
दुनिया पर आता है और फिर इतने लोगों के पापों को क्षमा
करता है जितने बनू कल्ब की बकरियों के बात हैं। (तिर्मिज़ी
739, इस हदीस को भी अल-बानी ने ज़ईफ़ ठहराया है)
(3) उसी प्रकार इस रात में नमाज़ें पढ़ने के सम्बन्ध में जो
रिवायतें आई हैं वह सब बनावटी हैं, जैसे हज़ारी नमाज,
सलातुर्रग़ाइब आदि। (अल-मौजूआत 2/440-443)
शबे-बरात में क्या किया जाए ?
शबे-बरात के सम्बन्ध में जो सही रिवायत आई है उस में इतना है
कि अल्लाह मुश्रिक और झगड़ालू के अतिरिक्त सब के पापों
को क्षमा कर देता है, इसमें कीसी प्रकार की इबादत का
वर्णन नहीं है इस लिए इस रात की सार्वजनिक क्षमा का
अधिकारी बनने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि
इनसान अपनी आस्था ठीक रखे, अल्लाह के अतिरिक्त
किसी अन्य से न मांगे। अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य पर
विश्वास न रखे। इसके साथ साथ मुसलमानों के सम्बन्ध में
अपना हृदय शुद्ध रखे और किसी से जलन और ईर्ष्या आदि न
रखे।
शबे-बरात जब क्षमा की रात है। तो उस में इबादत क्यों न की
जाएः
यदि कोई पूछे कि शबे बरात जब इबादत की रात है तो उसमें
इबादत क्यों न की जाए तो इस का उत्तर यह है कि हमने जो
कलमा पढ़ा है वह है :
ﻻ ﺍﻟﻪ ﺍﻻ ﺍﻟﻠﻪ ﻣﺤﻤﺪ ﺭﺳﻮﻝ ﺍﻟﻠﻪ
अल्लाह के अतिरिक्त कोई इबदत के योग्य नहीं और मुहम्मद
सल्ल. अल्लाह के रसूल हैं। अर्थात् हम अल्लाह की इबादत अपने
मन से नहीं अपितु मुहम्मद सल्ल. के बताए हुए तरीक़ के अनुसार
करेंगे। इस लिए हमें देखना होगा कि आपने कौन से अवसर पर
कौन सी इबादत की है ताकि हम उनको स्वयं के लिए आदर्श
बना सकें। अहादीस और सीरत की पुस्तकों के अध्ययन से पता
चलता है कि इस रात में अल्लाह के रसूल और आपको सहाबा से
कोई अमल करना साबित नहीं है। और किसी रात की श्रेष्ठा
सिद्ध होने से कोई ज़रूरी नहीं कि उस रात में इबादत भी की
जाए…उदाहरण स्वरुप अल्लाह के रसूल ने शुक्रवार के दिन और
रात का बहुत महत्व बयान फरमाया लेकिन उसके बावजूद यह
आदेश दिया कि :
ﻻ ﺗﺨﺼﻮﺍ ﻟﻴﻠﺔ ﺍﻟﺠﻤﻌﺔ ﺑﻘﻴﺎﻡ ﻣﻦ ﺑﻴﻦ ﺍﻟﻠﻴﺎﻟﻲ، ﻭﻻ ﺗﺨﺼﻮﺍ ﻳﻮﻡ ﺍﻟﺠﻤﻌﺔ ﺑﺼﻴﺎﻡ
ﻣﻦ ﺑﻴﻦ ﺍﻷﻳﺎﻡ، ﺇﻻ ﺃﻥ ﻳﻜﻮﻥ ﻓﻲ ﺻﻮﻡ ﻳﺼﻮﻣﻪ ﺃﺣﺪﻛﻢ . ﺭﻭﺍﻩ ﻣﺴﻠﻢ
रातों में से मात्र शुक्रवार की रात को क़याम के लिए और
दिनों में से मात्र शुक्रवार के दिन को रोज़ा कि लिए विषेश
न करो, हां यदि शुक्रवाद का दिन उन दिनों में आ जाए जिन
में तुम में से कोई व्यक्ति रोज़ा रखने का आदी हो तो उसका
रोज़ा रखने में कोई हर्ज नहीं है।
क्या शाबान की 15वीं रात फ़ैसले की रात है?
कुछ लोग शाबान की 15वीं रात को फैसले की रात सिद्ध
करने के लिए अल्लाह के इस आदेश को प्रमाण के रूप में पेश करते
हैं “ निःसंदेह हमने इसे बरकत वाली रात में उतारा है, निःसंदेह
हम डराने वाले हैं, इस रात में हर दृढ़ काम का फैसला किया
जाता है। (सूरः अल-दुख़ान 3-4)
हालांकि इस आयत में बरकत वाली रात से अभिप्राय लैलतुल
क़द्र है, जिसमें क़ुरआन उतरा है, अतः क़ुरआन ही से हमें इसका
उत्तर मिल जाता हैः अल्लाह ने फरमायाः “वह
रमज़ान का महीना है जिसमें क़ुरआन को उतारा गया।“ (सूरः
अल-बक़रः185 )
दूसरे स्थान पर अल्लाह ने लैलतुल कद्र के सम्बन्ध में फरमाया“
नि:संदेह हमने इसे लैलतुल क़द्र में उतारा है।“ (सूरः अल-क़द्र 1)
और लैलतुल कद्र शाबना में नहीं अपितु रमजान के अन्तिम दस
दिनों की विषम रातों में आती है। और इसी में इनसान के
जीवन, मृत्यु, रिज्क़ आदि का फैसला किया जाता है।
15 शाबान के बाद रोज़े रखने का हुक्मः
अल्लाह के रसूल सल्ल. रमज़ान के आगमण से एक दो दिन पूर्व
रोज़ा रखने से मना किया है, बुखारी और मुस्लिम की रिवात
है अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः
ﻻ ﺗﻘﺪﻣﻮﺍ ﺭﻣﻀﺎﻥ ﺑﺼﻮﻡ ﻳﻮﻡ ﻭﻻ ﻳﻮﻣﻴﻦ ﺇﻻ ﺭﺟﻞ ﻛﺎﻥ ﻳﺼﻮﻡ ﺻﻮﻣﺎً ﻓﻠﻴﺼﻤﻪ .
ﺭﻭﺍﻩ ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ ﻭ ﻣﺴﻠﻢ
“रमज़ान के एक दो दिन पहले से रोज़ा मत रखो, हां जो कोई
(आदत के अनुसार) पहले से रोज़ा रखता आ रहा है तो इसमें कोई
हरज की बात नहीं। “
इस लिए एक आदमी 15 शाबान के बाद भी रोज़ा रख सकता
है परन्तु उसे चाहिए कि रमज़ान के आगमण से दो दिन पहले
रोज़ा रखना बंद कर दे, रही वह हदीस कि जब 15 शाबान गुज़र
जाए तो रोज़े मत रखो ( अबूदाऊद, तिर्मिज़ी ) तो यह
रिवायत वास्तव मैं ज़ईफ और कमज़ोर है। इमाम अहमद रही. ने
कहा कि यह रिवायत शाज़ है क्यों कि यह हज़रत अबू हुरैरा
रजी. की रिवायत के विरुद्ध है जिस में आया है कि रमज़ान
के एक दो दिन पहले से रोज़ा मत रखो। और यदि हम रिवायत
को सही भी मान लें तो इतना कहा जा सकता है कि 15
शाबान के बाद रोज़े रखना मकरूह होगा हराम नहीं।
बिदआत में लिप्त व्यक्ति हौज़े कौसर से पानी पीने से वंचित
होंगेः
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह भविष्यवाणी भी कर
दिया था कि कुछ लोग होंगे जो दीन में अपनी ओर से मिलावट
करेंगे, चाहे उस की नियत अच्छी हो या बुरी, दोनों कारणों में उसे
पाप ही प्राप्त होगा और जन्नत में दाखिल होने से वंचित
होंगे,रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ हौज़ कौसर के
स्वादिष्ट पानी के पीने से वंचित होंगे। सही बुखारी की इस
हदीस पर विचार करें।
ﻋﻦْ ﺳَﻬْﻞِ ﺑْﻦِ ﺳَﻌْﺪٍ ﻗَﺎﻝَ : ﻗَﺎﻝَ ﺍﻟﻨَّﺒِﻲُّ ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠَﻴْﻪِ ﻭَﺳَﻠَّﻢَ : ﺇِﻧِّﻲ ﻓَﺮَﻃُﻜُﻢْ ﻋَﻠَﻰ
ﺍﻟْﺤَﻮْﺽِ ﻣَﻦْ ﻣَﺮَّﻋَﻠَﻲَّ ﺷَﺮِﺏَ، ﻭَﻣَﻦْ ﺷَﺮِﺏَ ﻟَﻢْ ﻳَﻈْﻤَﺄْ ﺃَﺑَﺪًﺍ ، ﻟَﻴَﺮِﺩَﻥَّ ﻋَﻠَﻲَّ ﺃَﻗْﻮَﺍﻡٌ ﺃَﻋْﺮِﻓُﻬُﻢْ
ﻭَﻳَﻌْﺮِﻓُﻮﻧِﻲ، ﺛُﻢَّ ﻳُﺤَﺎﻝُ ﺑَﻴْﻨِﻲ ﻭَﺑَﻴْﻨَﻬُﻢْ، ﻓَﺄَﻗُﻮﻝُ: ﺇِﻧَّﻬُﻢْ ﻣِﻨِّﻲ، ﻓَﻴُﻘَﺎﻝُ: ﺇِﻧَّﻚَ ﻟَﺎﺗَﺪْﺭِﻱ ﻣَﺎ
ﺃَﺣْﺪَﺛُﻮﺍ ﺑَﻌْﺪَﻙَ، ﻓَﺄَﻗُﻮﻝُ: ﺳُﺤْﻘًﺎ، ﺳُﺤْﻘًﺎ، ﻟِﻤَﻦْ ﻏَﻴَّﺮَﺑَﻌْﺪِﻱ . ‏( ﺭﻭﺍﻩ ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ: 7050 ﻭ
6583 ﺻﺤﻴﺢ ﻣﺴﻠﻢ: 2290
सहल बिन साद (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः बेशक मैं कौसर कुंवाँ पर तुम्हारा
स्वागत करूंगा। जो भी वहां मेरे पास से गुज़रेगा, वह उस कौसर कुंवाँ
से पानी पीयेगा और जो उसका पानी पी लिया, वह कभी
पियासा नहीं होगा, यक़ीनन कुछ लोग मेरे पास आएंगे और मैं उन्हें
पहचान लूंगा और वह लोग भी मुझ से परिचित होंगे, फिर उन्हें मेरे
पास आने से रोक दिया जाएगा। तो मैं कहुंगा, बेशक वह मेरे
अनुयायी हैं, उसे मेरे पास आने दिया जाए। तो कहा जाएगा, बेशक
आप नहीं जानते कि आप के बाद इन लोगों ने दीन (धर्म) में नई नई
चीज़ (बिदअत) ले कर आ गए। तो मैं कहुंगा, दूर हो जाओ, दूर हो
जाओ, जिन लोगों ने मेरे बाद दीन (धर्म) में नई नई चीज़ों
(बिदअतों) पर अमल किया। (सही बुखारीः 7050 व सही
मुस्लिमः 2290)
बिदआत और मुहदसात वह घातक बीमारी है, जिस में मुस्लिम
समाज लिप्त है। आश्चर्य जनक बात यह है कि बहुत सारे लोग
अतिप्रेम से बहुत कुछ इबादतें दीन के नाम पर करते हैं। परन्तु उनकी यह
कोशिश अकारत हो जाएगी और नेकियों की जगह गुनाहों से
अपने दामन को भरते हैं, इस लिए हम सब को अपनी इबादतों के लिए
चिंतित रहना चाहिये और केवल वही काम करना चाहिये जो सही
हदीसों और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत से
प्रमाणित हो।
संछिप्त में कुछ बिद्अतों का वर्णनः

शबे बरात के दिन रूहों का आना और उन के लिए खाना
और हल्वे और दुसरी चीज़ें तैयार करके उस पर फातिहा पढ़ाना
इत्यादि सब बिदअत और खुराफात के सूची में आता है। जैसा के
मुहद्देसीन उलमा ने फरमा दिया है।
अन्त में अल्लाह से दुआ है कि वह हम सब को शाबान में अपने
नबी मुहम्मद सल्ल. के आदेशानुसार जीवन बिताने की
तौफीक़ दे और हर उस काम से बजाए जो अल्लाह के रसूल
सल्ल. से प्रमाणित नहीं है। आमीन